
गेट की खटखटाहट की आवाज आते ही राधिका अपनी माँ के पास चिलाते हुए आती ह मा मा छोटी मासी आयी है . सपना मासी राधिका की माँ नैना को प्रणाम दीदी – आओ सपना कहो कैसी हो आज अचानक दीदी की याद कैसे आ गयी . जब से मा का देहांत हुआ ह तुम लोग तो मा के साथ मुझे भी भूल गयी न कभी कॉल करती हो और न ही दीदी से मिलने आती हो हमारे घर के पास इतने करीब चाचा जी यह तो आने की हमे भनक भी नही लगने देती हो मानो अब हम तुम्हारे तो दुश्मन ही बन गए ह . पता नही चाचा, चाची ने तुम्हारे दिमाज में मेरे खिलाप क्या जहर घोल दिया ह, पहले तो उनलोग को तुम बिल्कुल भी नही भाती थी अब मा के जाने के बाद तो उन्न लोगो के लिए इतनी प्यारी कब से हो गयी , चाचा और चाची तो बस मौके की तलास में रहते ह की कब इनके रिश्ते में दरार लाये , कई बार मुझे तो कभी राजेश भइये को भड़काने की कोशिश की पर असफल रहे. पर तुम तो एकदम उनकी जाल में फस गयी हो तभी तो तुम्हे अब अपनी दीदी बुरी और मतलबी लगने लगी ह , मैन हमेशा तुम्हारे हर जरूरत को अपने से पहले रखा तुम्हरी कोई भी ख्वाइस अधूरी न रहे इसके लिए मेने मा और पापा से कितनी डाट सुनी पर तुम्हे आज अपने से ज्यादा दूसरे प्यारे हो गए ह.
अब सपना के सब्र का बान टूट गया वो भी कहा चुप रहने वालों में से ह – चिल्ला उठि बस दीदी तुम्हारे जो मन मे आएगा तुम बोलती चली जाओगी और मै चुप चाप सुनती रहू- अरे तुम तो हर छोटी सी छोटी बात का बतंगड़ बना देती हो है मैं चाचा के घर आई थी पर तुम्हारे यहाँ नही आ सकी क्योंकि मैं सफर में काफी थक गई थी उसी दिन मुझे अपने ननद के यहा भी जाना था. इसीलिए मेरे दिमाग से निकल गया और मैं तुम्हे फ़ोन भी नही कर सकी ,
नैना- हा सपना मैं सब जानती हूं अब तुम्हे तुम्हरी दीदी कहा से याद रहेगी अब तो चाचा चाची ही जो तुम्हारे लिए सब कुछ हो गए ह, अब तो बस यही बहाना सुन्नना बाकी राह गया था. माँ के जाने के बाद तो मैं भी तुम्हारे लिए मर गयी हु न
सपना- खरे होते हुए अब बस भी करो दीदी, चार महीने पहले मैने भी तो तुम्हे पूरे परिवार के साथ अपने घर प्रवेश में आमंत्रित किया था पर न तुम आयी और न ही जीजा जी सिर्फ गैरो की तरह सगुन के पैसे भिजवा दिए और तबियत खराब का बहाना बना दिया ,क्या मुझे बुरा नही लगा सब कितनी बातें बना रहे थे. तुम्हे तो जब देखो एक ही जप अलापते रहती हो. तुम्हें किसने छोड़ दिया ह जो तुम हमेशा एक जप लगाते रहती हो माँ के साथ मुझे भी दफन कर दिया. सच तो ये ह की अब तुम्ही किसी के साथ रहना पसन्द नही करती मैं भी पागल थी जो तुमसे मिलने आ गयी , चाची सही ही कहती ह आजकल तुम्हारी दीदी का स्वभाव बदल सा गया ह हर छोटी छोटी बातों पे चीर चीर करती रहती ह.
राधिका – हाथों में चाय नास्ते की थाली लिए चिलाती ह मासी मासी रुकिए माँ और आप तो अपनी सगी बहने ह, उन्होंने तो अपनी दिल की बात आपसे कही जैसे अपने कहा इसमे इतना गीले शिकवे करने की क्या बात. अब तो दोनों की मन की भड़ास निकल गयी न तो अब ये गुस्सा थूक दिजीये और एक दूसरे को माफ कर साथ मे नास्ता कीजए.
सपना- पर सपना ठहरि नखरे वाली वो कहा मानने वाली थी , दरवाजा जोर से पीटते हुए तुम्हरी माँ की बातों से ही मेरा पेट भर गया कहते हुए चली जाती ह.
नैना- बहन की बाते सुन फफक फफक कर रोने लगती ह
राधिका- माँ चुप हो जाओ मासी अभी गुस्से में ह
नैना- नही बेटी ये सब चाचा, चाची का किया धरा ह इतनी जहर मन मे हमलोगो के खिलाप भर दिया ह की माँ के साथ साथ उसने अपनी बहन को भी दफन कर दिया.
प्रिये पाठक ये कहानी कल्पना मात्र ह. आप लोगों को अगर पसंद आये तो Indianwomania.com को like, share, comment and Subscribe करना न भूले.
लेखक – शालिनि सुमन

